एक लड़की थी पागल सी
अपने आप में ही गुम रहती थी।
सकल से प्यारी और बातों से मानो परियों की रानी थी।
एक लड़की थी पागल सी।।
नजाने क्यूं बो सबसे दूर खड़ी रहती थी !
लोगों के असली रूप सैयद बखूबी समझ ती थी।
हाल पूछो उसको तो कहां कुछ बताती थी।
बस एक हसी से मानो सब कुछ बयां कर थी।
एक लड़की थी पागल सी।
अपने आप में खोया हुआ करती थी ।
मुझे थोड़ा दर्द हो तो बो हड़बड़ी जाती थी।
बो रोती भी मेरे लिए और हसना मुझे सिखाती थी।
नाराज होने पर भी हमें समझा लिया करती थी ।
मेरे सारे गलती भुला कर साथ खड़ी रहती थी।
एक लड़की थी पागल सी ।
जो गुमसुम हुआ करती थी।
सारे बातों को मेरे बड़ी इत्मीनान से सुनती थी।
मेरे हर एक आसुओं को बो अपना माना करती थी।
रब जाने बो मुझे इतना केसे चाहती थी।
एक लड़की थी जो मुझे सबसे ज्यादा अपना मानती थी।
एक लड़की थी जो मुझे सैयद मुझसे बेहतर जानती थी।
एक लड़की थी पागल सी।
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